Tuesday, July 6, 2010

सप्तकुंड

सप्तकुंड को सैलानियों का इंतजार


चमोली के सिम्बे बुग्याल में स्थित 'सप्तकुंड' किसी अचरज से कम नहीं। यहां स्थित सात कुण्डों में से छह ठंडे और एक गर्म पानी का कुण्ड है। करीब पंद्रह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सप्तकुंड पहुंचने के लिए एशिया के सबसे कठिन पैदल ट्रैक को पार करना पड़ता है। तमाम विशेषताएं होने के बावजूद इस खूबसूरत जगह को पर्यटन के लिहाज से विकसित नहीं किया गया है।

सप्तकुंड पहुंचने के लिए जितना दुर्गम रास्ता तय करना पड़ता है, वहां पहुंचकर अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों को उतनी ही आनन्द की अनुभूति कराता है। सप्तकुंड पहुंचने के लिए चमोली जिले के दशोली ब्लाक के निजमुला नामक स्थान से पैदल सफर शुरू होता है। 28 किलोमीटर पैदल चलने के बाद सुरम्य घाटियों के बीच स्थित ईराणी गांव पहुंचा जाता है। फिर शुरू होता है दुर्गम पहाडि़यों का सफर। ईराणी से सिम्बे बुग्याल होते हुए लगभग 10 किलोमीटर का पैदल सफर सैलानियों को सप्तकुंड पहुंचा देता है। खास बात यह है कि सिम्बे बुग्याल की खूबसूरती राहगीर को थकान महसूस नहीं होने देती। यहां खिले विभिन्न प्रजातियों के हजारों फूल 'वैली आफ फ्लावर्स' के वजूद को भी चुनौती देते प्रतीत होते हैं। इतना ही नहीं इस बुग्याल में हरी घास चर रहे दुर्लभ प्रजाति के जंगली जानवर पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सिम्बे बुग्याल पार करते ही ऊंची चोटी पर आसपास स्थित पानी के सात कुण्ड (बड़े तालाब) दिखाई देने लगते हैं, जिन्हें सप्तकुंड के नाम से जाना जाता है। ये सभी कुंड आधा किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। इनमें से छह कुण्डों का पानी इतना ठंडा है कि उसमें एक डुबकी लगाना भी मुश्किल हो जाता है, जबकि एक कुंड का पानी इतना गरम है कि उसमें नहाने से पर्यटकों की थकान दूर हो जाती है। सप्तकुंड का महत्व पर्यटन के लिहाज से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी है। हर वर्ष नन्दा अष्टमी को ईराणी के ग्रामीण वहां पहुंचकर नन्दा देवी की आराधना करते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि इतना विस्मयकारी और सौन्दर्य से भरपूर पर्यटक स्थल होने के बावजूद सप्तकुंड को पर्यटन मानचित्र में स्थान नहीं मिल पाया है। यह स्थान अभी भी गुमनामी के अंधेरे में खोया हुआ है। ट्रैकिंग के शौकीन नाममात्र के देशी-विदेशी पर्यटक हर वर्ष यहां पहुंचकर प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाते हैं। ईराणी के उपप्रधान भरत सिंह नेगी का कहना है कि सप्तकुंड जैसे स्थलों को पर्यटन सर्किट से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि क्षेत्र का विकास होने के साथ-साथ स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिल सके।