दास्तान-ए जिन्दगी:
आज एक बार फिर जिन्दगी ने उसी मोड़ पर खडा किया,
ऎसे कभी सोचा न था जाने किस खता का बदला लिया..!!
ये इम्तेहां है जिन्दगी की या, रूख वक्त ने बदल लिया,
सोचा न था कभी इसकदर भी तन्हा हो जायेगे हम,
दोष दूँ किस्मत को या खता खुद से हुई है,
सोचा न था यों राहों मे चलते चलते रुक जायेगे हम,
गौरों से तो शिकवा ही क्या जब अपनों ने ही छोड दिया,
आज एक बार फिर जिन्दगी ने उसी मोड़ पर खडा किया,
ऎसे कभी सोचा न था जाने किस खता का बदला लिया.!!
इस रंग बिरंगी दुनियाँ के झरोखों में,
जाग उठी थी एक तमन्ना जीने की,
पर सोचा न था यों दुनियाँ को ही छोड़ जायेंगे हम,
कुछ पाने की आस में, कुछ करने की चाह में
सोचा न था इस तरह वक्त के आगोश में खो जायेंगे हम,
था अपना भी कोई सहारा जीने का,
पर शायद किस्मत बनाने वाले को यह मंजूर न था,
लोग कहते है किस्मत का दस्तूर है ये,
हम कहते है शायद हमारा कसूर है ये,
आज एक बार फिर जिन्दगी ने उसी मोड़ पर खडा किया,
ऎसे कभी सोचा न था जाने किस खता का बदला लिया..!!
जहाँ छोड़ आये थे सारे गिलवे शिख्वे,
फिर क्यों उसी राह पर खडें है हम,
किससे करें दर्द-ए बयाँ जिन्दगी, किसे दें दोष हम,
कुछ दिल की दिल में ही रखने की तमन्ना हैं
इसी लिए आज कल खामोश है हम,
आज एक बार फिर जिन्दगी ने उसी मोड़ पर खडा किया,
ऎसे कभी सोचा न था जाने किस खता का बदला लिया..!!
© देव नेगी.
!!!!जय हिन्द!!!!
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