Thursday, May 17, 2012

*जिन्दगी*




कभी कभी सोचता हूँ क्या है ये जिन्दगी,
कभी हकीकत तो कभी एक सपना  
कभी सच सी तो कभी  झूठ सी है ये जिन्दगी
कभी कभी.................
कभी रुलाये तो हँसाये ये जिन्दगी
कभी लगे तन्हा सी तो कभी लगे भरी भरी
कभी लगे अपनी तो कभी परायी सी ये जिन्दगी
कभी कभी...........
कभी दे गम तो कभी दे खुशी ये जिन्दगी
कभी दिखाये अनेक सपने तो कभी तोडे़
कभी समेटे खुशियां अपने आगंन मे तो
कभी पखं  पसारे  ये जिन्दगी
कभी कभी...........
कभी लगता एक पहेली सी है सुलजती नही
पर फ़िर भी एक सहेली सी है ये जिन्दगी
कभी लगता है मुस्कराती कभी अकेली सी
कभी धूप तो कभी छाऊँ सी ये जिन्दगी,,,
 अभी तक समझ नहीं पाया क्या है ये जिन्दगी
समझना है इसको कठिन फ़िर भी कोशिस करता हूँ.
क्या है ये जिन्दगी बस यही सोचता हूँ
कभी कभी सोचता हूँ क्या है ये जिन्दगी...!!


!!!*धन्यवाद*!!!

****~!~* देव *~!~****


!!!! हिन्द!!!!

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 C@Dev Negi (देव नेगी)

Wednesday, May 16, 2012

!!>>हम और हमारी भाषा<




अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम *** गुलामी या आवश्यकता

आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :

1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: विश्व में इस समय १० सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थायें (Top 10 Economies) अमेरिका, चीन, जापान, भारत, जर्मनी, रशिया, ब्राजील, ब्रिटेन, फ्रांस एवं इटली है| जिसमे मात्र २ देश ही अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं अमेरिका और ब्रिटेन वोह भी एक सी नहीं, दोनों कि अंग्रेजी में भी अंतर है | अब आप ही बताएं कि किस आधार पर अंग्रेजी को वैश्विक भाषा (Global Language) माना जाए |दुनिया में इस समय 204 देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं जिसमे भारत दूसरे नंबर पर है | इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनीज हो सकती है क्यूंकि ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।

2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंच के, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/ पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।

3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई "JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है।
हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों में हर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतने बड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इनहोने सिर्फ अपनी मात्रभाषा में काम किया।
जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्रभाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा। अंग्रेजी पढ़ायें इसमें कोई बुरे नहीं लेकिन हिंदी या मात्रभाषा की कीमत पर नहीं| किसी भी संस्कृति का पुट उसके साहित्य में होता है और साहित्य बिना भाषा के नहीं पढ़ा जा सकता| सोचिये यदि आज के बालकों को हिंदी का ज्ञान ही नहीं होगा तो वे कैसे रामायण, महाभारत और गीता पढ़ सकेंगे जिसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए हजारों अंग्रेज ऋषिकेश, वाराणसी, वृन्दावन में पड़े रहते हैं और बड़ी लगन से हिंदी एवं संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करतें हैं |

क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्रभाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है।

* जो लोग अपनी मात्रभाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। *

दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा 'संस्कृत' है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत' शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मार खाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्रभाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्रभाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गाली हमेशा मात्रभाषा में ही देता हैं।
किसी भी व्यक्ति कि अपनी पहचान ३ बातो से होती है, उसकी भाषा, उसका भोजन और उसका भेष (पहनावा). अगर ये तीन बात नहीं हों अपनी संस्कृति की तो सोचिये अपना परिचय भी कैसे देंगे किसी को ?
॥ मात्रभाषा पर गर्व करो.....अँग्रेजी की गुलामी छोड़ो ॥

!!! भारत माता की जय !!!

सोचिये..!!

!!!*धन्यवाद*!!!

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हमारे देश की स्थिति और घोटाले.




किसी जमाने में सोने की चिढिया कही जाने वाला हमारा देश भारत की अब स्थिति दयनीय होती जा रही है, और इससे दोषी कौन है??  किसी न किसी रूप मे खुद हम इसके जिम्मेदार है,
देखो आज कैसी स्थिति आ गयी है, कही करोंडों रूपये के घोटाले हो रहे है तो कहीं लूटपाट, कहीं काला धन विदेशो मे जमा हो रहा है, गरीबों का शोषण हो रहा है, गरीब और गरीब होते जा रहे है अमीर और अमीर होते जा रहा है, महंगाई लगातार बढती जा रही है एक आम इन्सान जा जीना मुश्किल होते जा रहा है, किसी को तो दो वक़्त की रोटी भी नसीब नही हो पा रही है, इस देश मे चाहे कुछ भी हो मारा हमेशा गरीब ही जाता है करता कोई और है भरता कोई और है, एक आम आदमी दिन रात मेहनत करके अपने खून पसीने की कमाई का कुछ हिस्सा सरकार को कर के रूप मे दान देता है राकि उस रकम से देश का विकास हो, पर ऊंचे स्तर पर बैठे ऎसा होना नही देते हैं क्योंकि उनको अपने पेट भरने से मतलब है, आम जनता की किसको पडी़..? सोचने की बात ये है कि इनके पास ये सब पैसा आता कहाँ से..? इसमे सोचने की क्या जरूरत.? ये सब हम सबका पैसा है जो हम सरकार को अपने हिस्से की रकम देते है वो देश के विकास मे नहीं बल्कि इन लोगों के परिवार के विकास हो रहा है विदेशो मे वो धन कई वर्षो से जमा है, 
पर एक बात समझ मे नहीं आयी कई प्रयासों के बावजूद भी आज तक वो धन भारत मे नहीं आया क्यो..? बाबा राम देव के द्वारा चलाये गये इस मुहिम के बाद खुद बाबा राम देव पर अंधेरे मे धोखे से हमले हुये.. आखिर क्यो..? ऎसे ही कितने क्यों के जवाब अभी बाकी है और सवाल हर उस हिन्दुस्तानी के अन्दर है जो सच्चा हिन्दुस्तानी है, पर कौन देगा इन सब क्यों का जवाब.? क्या सिर्फ हम एक सवाल तक ही सीमित रह जायेंगे? आखिर कब तक ?  कौन देगा इन सब क्यों का जवाब..? कोई नहीं क्योकि कोइ जवाब देने वाला ही नही है. बडे़ स्तर पर बैठे लोगों का देश को लूटने मे ही सार समय चला जाता है और छोटे स्तर के लोग अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी से बाहर ही नहीं निकल पाते है. दो वक़्त की रोटी के लिये एक मजदूर जितनी मेहनत करता है अगर हमारे देश के नेता उसका 1% भी काम करे तो हमारा देश दुनियां के विकसित देशो मे होता, और इस देश मे ना ही गरीबी होती और ना ही भूखमरी और ना ही इस देश की अज ये दुर्दशा होती!
ये हमारा दुर्भाग्य ही है कि आज हमारे देश की हालत ये है.. और कहीं ना कही इससे जिम्मेदार हम खुद हैं. हम ही सही इंसान को पहिचानने मे गलती करते है और ऎसे देश के ळुटेरो, चोरों को गद्दी सौंप देते है, और हम सो जाते है और वो लोग अपनी मन मर्जी करते है फिर हम अपने को वैसे ही डाल देते है फिर उसी के अनुसार जीने लग जाते है, और वो अपना काम करते रहते है, फिर कभी कोई जाग उठता है और तब तक बहुत देर हो जाती है, ये भी सच है कि आज कल किसी के पास समय नहीं है मजबूरी भी है, अगर अपना काम छोड़ कर अगर इन सब लोगों के खिलाफ आवाज उठाते है तो खायेंगे क्या.? परिवार भूखा ही मर जायेगा. इसलिये जो चल रहा है चलने दो और उसी के हिसाब से हमने जीना सीख लिया है.!
हमारे कानून की तो बात ही क्या है आज का कानून सिर्फ पैसे वाले दलालों के लिए है सच्चाई एवं ईमानदारों के लिये नहीं. लगता है कि कानून भी पैसे एवं ताकत का गुलाम बन गया है, कहते है ना पैसे है तो सब है और यहाँ सब बिकता है आज कल ये सब सत्य होते जा रहा है. पैसा ही सब कुछ बन गया है ईमान धर्म कुछ नहीं बचा है इन्सान अपनी इन्सानीयत भूल चुके हैं। पैसे है तो सच कुछ है नहीं तो कुछ भी नहीं. ये सत्य भी है पर सिर्फ कुछ हद तक, परन्तु अब तो इसका मतलब ही बदल गया है., 
हमारा कानून सिर्फ नेताओं और बडें स्तर पर बैठे अधिकारियों के हाथो की कठपुतली बन कर रह गयी है, बडे बडे भ्रष्ट नेता सिर्फ दिखावे के लिये जेल जाते है फिर उनकी जमानत आराम से हो जाती है,  टेलीकोम घोटाले के महान दिग्गज नेताओं को आसानी से जमानत मिल गयी है, कितने बडी़ शर्म की बात है पूरे देश में.. अगर एक गरीब  500 (पाँच सौ रूपये) की चोरी करता है तो उसे कडी़ सजा मिलती है पर हजारों करोडों रूपये की चोरी करके ये लूटेरे आराम से आजाद हो रहे है..! ये है हमारा महान कनून, कई निर्दोष  जिन्दगी भर न्याय पाने के लिये न्ययालय के चक्कर काटते काटते थक  जाते है और देश के लूटेरे सबको खरीद कर बाहर निकल जाते हैं । अब तो लोगों का न्याय से विश्वाश ही उठता दिख रहा है, उपर से नीचे तक सब के सब बिके हुये है, सारे नेता किसी न किसी विवाद मे घिरे हुये है. कोई अश्लीलता (स्केम्) मे पकडा़ तो कोई संसद मे गंदी पोर्न फिल्म देखते हुये पकडा़ जा रहा है तो कई करोडों के घोटाले में,। यहाँ तक कि लोगों कि न्याय देने वाले न्यायाधीश भी एसे कामों मे पकडे़ जा रहे है ये बडी शर्म की बात है, ये सोचने वाली बात है कि आज हम और हमारा देश किस तरफ जा रहे हैं !  एक तरफ तो कहा जाता है कि कानून सबके लिये समान है एक है और दूसरी तरफ भ्रष्ट और चोर आसानी से छूट जाता है पर एक गरीब ईमानदार को न्याय नहीं मिल पाता, फिर ये कहावत सत्य होती है कि कानून अन्धा है. वो सच्चाई को देख नहीं सकता ! 
एक तरफ हमारे यहाँ आतंकवादी की सेवा की जा रही है वहीं दूसरी तरफ हमारी रक्षा करने वाली देश के लिये अपनी जान न्योछावर करने वाली सेना के साथ समजौता किया जा रहा है, वहाँ भी घोटाला हो रहा है ! देश के प्रमुख दुश्मन कसाव को विरयानी खिलायी जा रही है और इदर लाखो लोग बिना खाने के भूखे मर रहे है ! पर इतना सोचे कौन.? 
अगर कोई इन सब के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे भी दबाने की पूरी कोशिश की जाती है, यहाँ तक कि ये अपने बारे मे सच्चाई सुन नहीं पाते अगर कोई इनके बारे मे सच्चाई बोले तो देश का काम छोड कर सांसद मे सिर उसी मुद्दे पर चरचा होता है. और सांसद कभी तो अखाडा बन जाता है ! ये है हमारे देश के नेता..!! ऎसा देश है मेरा..!! 
अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम कैसी जिन्दगी जीने का फैसला करते हैं... !!!




सोचिये..!!


!!!*धन्यवाद*!!!

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