Thursday, April 18, 2013

असमानता / मानवता


आज कल यह देखते हुए आश्चर्य होता है कि मनुष्य अपनी मनुष्यता भूलता जा रहा है, असमानता एवं झूठे अहंकार की चक्की मे पिसते जा रहा है ! जब दुनियाँ मे मानव आये थे तो एक समान थे पर अभी इतना भेद भाव क्यो?? जैसे कोई भी गरीब किसी बडे़ डाक्टर के पास इलाज नहीं करा सकता क्योंकि उसके फीस इतनी होती है की गरीब के २ साल का खर्चा चल जाय ! और कोई बड़ा डाक्टर किसी गरीब को देखने से कतराता है वो इस लिए कि उसको लगता है की इससे उसके इज्जत कम हो जायेगी, उसकी छोटी सोच को अघात पहुँचेगी.! साथ ही कोई बडा़ वकील किसी गरीब का केस नहीं लड़ता है, (यहाँ बडे़ का आशय पैसे से है सोच, इंसानियत या विचारों से नहीं) अगर कोई बडा़ इन्सान किसी सड़क से गुजरता है या बाजार में जाता है, और वहाँ पर कोई बच्चा या कोई भिखारी भीख माँगे तो वह इन्सान भिखारी या उस इन्सान को हीन भावना की दृ्ष्टि से देखेगा, और भीख तो दूर की बार गालियां दे कर उन्हे भगा देगा ! किसी के घर में अगर कोई सेवक जिसे लोग नौकर की उपाधि दे देते हैं, २४ घंटे मे से १५-१६ घंटे काम करता है, फिर भी उसको हीन भावना से देखा जाता है सीधे मुहं उससे बातें नहीं की जाती ! उनके प्रति कुटिल व्यवहार का प्रयोग किय जाता है, अपने को तो आलीसान मोटे- मोटे गद्दों पर सोयेंगे और उन बेचारों को एक चद्दर के साथ जमीन पर.! यह सिलसिला यहीं नहीं रुकता, कहते है की भगवान के द्वार सब एक समान है, परन्तु अब तो मंदिरों में भी अब भेद भाव की कर्छी चलती है, अक्सर देखने को मिलता है अगर कोइ पैसे वाला जिसे आज कल बडा़ कहा जाता है वो मन्दिर मे दस्तक देते है तो पंडित लोग एसे सत्कार करते है कि जैसे खुद भगवान जी पधार गए हों. और एक सच्चा श्रद्धालू किसी कोने में बैठ कर ये तमाशा देख रहा होता है ! इस कल युग में पाखण्डियों का सत्कार ही होता है !
असली दु:ख तब होता है जब कई लोग अपने माँ पिता जी की भी इज्जत नहीं करते, एवं उनको असहाय छोड़ कर अपने आप अय्यासशी भरा जीवन जीते है, और बूडे़ माँ बाप किसी वृ्द्द आश्रम या अकेले अकेले कठिनाई भरा जीवन यापन करते है, आप खुद सोचिए कितनी सोचनीय एवं दु:खद बात है !
मैं भी मानता हूँ कि जीवन यापन के लिए पैसा, धन बहुत आवश्यक है, परन्तु इसके कारण दूसरों की भावना क्षीण करना कहाँ की मानवता है?
अब एक बार सोच कर देखिए जिनके बारे मे मैनें इस लेख में चर्चा की है, उनमे से उनके पैसे को अलग कर दिया जाय तो उनके पास क्या बचेगा.? क्या लोग उनकी इज्जत करेंगे..? नहीं. मतलब लोग इंसान की नहीं बल्कि उनके पैसों की इज्जत करते है ! मतलब ही इज्जत की डोर है.!

कहने का आशय यह है कि लोगों के अन्दर से इंसानियत खतम हो चुकी है मर चुकी है, अहंकार, दिखावा एवं भेद भाव की आग में सब जले जा रहे हैं और राख होने की कगार पर है !

यह देख कर आत्मीय भावना को ठेस पहुँचती है, मन दु:खी होता है, मनुष्य होने एवं मनुष्यता पर हैरानी एव लाचारी आभास होता है..!

मनुष्य का पहला धर्म मानव सेवा भाव होना चाहिए ! उसके कर्म उसका धन होता है , उसकी इज्जत उसकी पहिचान होती है !

इन भावो को हमेशा साथ रखिएगा, और अपने अन्दर खुद को जगाए रखिएगा. खुश रहें एवं खुशियाँ बाँटे..!

धन्यवाद..!!

© देव नेगी


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